पटना : पटना के फुलवारी शरीफ में सोमवार को आस्था, परंपरा और भाईचारे का अद्भुत नज़ारा देखने को मिला. मौका था 207 साल पुरानी ‘खप्पड़ पूजा’ का, जो आज भी उसी श्रद्धा और सामाजिक एकता के संदेश के साथ निभाई जा रही है, जैसे सदियों पहले शुरू हुई थी. यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक समरसता की मिसाल भी है.
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खप्पड़ पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें भाग लेने वाले श्रद्धालु पारंपरिक हथियार—तलवार, लाठी और भाले—के साथ देवी मां के खप्पड़ (धारदार पात्र) को लेकर दौड़ते हैं. लेकिन ये हथियार किसी हिंसा के लिए नहीं, बल्कि एकता, शांति और महामारी से रक्षा के प्रतीक के रूप में उपयोग किए जाते हैं. यह पूजा हर साल सावन की अमावस्या से शुरू होकर नौ दिनों तक चलती है.
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मान्यता है कि करीब दो सदियों पहले जब इस क्षेत्र में महामारी फैली थी, तब माता काली ने खप्पड़ पूजा की प्रेरणा दी थी. देवी स्थान के अध्यक्ष देवेंद्र प्रसाद बताते हैं कि माता ने स्वप्न में दर्शन देकर यह परंपरा शुरू करने को कहा था. तब से आज तक हर साल यह पूजा की जा रही है और स्थानीय लोग मानते हैं कि जहां खप्पड़ पूजा होती है, वहां महामारी नहीं फैलती.
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इस पूजा की एक और खास बात यह है कि इसमें हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई – सभी धर्मों के लोग श्रद्धा से शामिल होते हैं. यहां कोई भेदभाव नहीं होता, सिर्फ आस्था होती है. स्थानीय पुजारी संतोष पांडेय के अनुसार, “यह परंपरा हर धर्म को जोड़ती है, तोड़ती नहीं.”
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सुरक्षा को लेकर भी प्रशासन सतर्क रहता है. सिटी एसपी पश्चिमी पटना भानु प्रताप सिंह ने बताया कि “पूरे आयोजन में सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए जाते हैं. महिला और पुरुष बल तैनात रहते हैं और ट्रैफिक रूट भी डायवर्ट किया जाता है.”
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खप्पड़ पूजा की तैयारियों में महिलाओं की भूमिका अहम होती है. पूजा से एक सप्ताह पहले ही गीत, भजन, सजावट और भक्ति कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं. सुनीता देवी, ममता देव और सुधा आदेवी जैसी स्थानीय महिला श्रद्धालुओं ने बताया कि “मां की पूजा से जो भी मुराद मांगी जाती है, वो जरूर पूरी होती है.” महिलाएं ढोल-मंजीरे के साथ माता के गीतों में झूमती नजर आती हैं.
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खप्पड़ पूजा में आम लोगों के साथ कई जनप्रतिनिधि भी हिस्सा लेते हैं. इस बार भी पूर्व केंद्रीय मंत्री और सांसद रामकृपाल यादव, बेला यादव समेत कई नेताओं ने देवी मां के दरबार में पहुंचकर आशीर्वाद लिया और आयोजन की भूरी-भूरी प्रशंसा की.
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खप्पड़ पूजा ना सिर्फ आस्था का पर्व है, बल्कि यह समाज को जोड़ने वाला पर्व भी है. 207 सालों से चली आ रही इस परंपरा की लौ आज भी उतनी ही तेज़ जल रही है. और शायद यही कारण है कि फुलवारी शरीफ की यह पूजा बिहार ही नहीं, पूरे देश में एकता और आस्था का प्रतीक बन गई है.
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