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क्या Teenage Relationship इमोशनल कनेक्शन या इन्फ्लुएंस?

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इन्फ्लुएंस या इमोशन?

(Teenage Relationship) : आजकल के किशोर पहले की तुलना में कहीं अधिक जल्दी रिलेशनशिप में आ रहे हैं . कभी स्कूल में, कभी इंस्टाग्राम पर चैट करते हुए . सवाल यह उठता है कि क्या यह रिश्ता उनके इमोशनल डेवलपमेंट का हिस्सा है या यह सिर्फ सोशल मीडिया के ट्रेंड्स और दोस्तों के इन्फ्लुएंस का नतीजा?

विशेषज्ञ की राय:

डॉ. नेहा कपूर , चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट कहती हैं, “टीनएज वह समय है जब बच्चा आत्म-पहचान (self-identity) खोज रहा होता है . ऐसे में रिलेशनशिप किसी भावना से ज्यादा एक्सपेरिमेंटेशन भी हो सकता है . अगर पैरेंट्स और स्कूल सही दिशा न दें तो ये रिश्ते भ्रम और असुरक्षा का कारण बन सकते हैं .”

वहीं, स्कूल काउंसलर पूजा मल्होत्रा का मानना है, “हमने कई केस देखे हैं जहां बच्चे सिर्फ इसलिए किसी के साथ रिलेशन में आए क्योंकि उनके ग्रुप में सभी का बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड था . यह ‘peer pressure’ और ‘FOMO’ (Fear of Missing Out) का प्रभाव है, न कि पक्की समझदारी से लिया गया निर्णय .” (Relationship Tips, Virtual Love, Real Love)

जब सोशल मीडिया बनाता है रिश्तों का मॉडल

इंस्टाग्राम रील्स, वेब सीरीज़ और ओटीटी कंटेंट में रोमांस को “cool” और “essential” बताया जाता है . टीनएजर्स उस फैंटेसी की नकल करने लगते हैं . एक सर्वे के मुताबिक, 60% किशोरों ने माना कि वे ऑनलाइन देखा गया रिश्ता असल जीवन में अपनाने की कोशिश करते हैं , भले ही वो रिश्ता उनकी मानसिक स्थिति के लिए नुकसानदेह हो .

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अगर रिश्ता इमोशनल ग्रोथ में मदद करे? (Teenage Relationship)

यह कहना भी गलत नहीं होगा कि कुछ किशोरों के रिश्ते उन्हें भावनात्मक सहारा देते हैं . अगर एक-दूसरे की इज्जत हो, सीमाएं तय हों और भरोसे की नींव हो तो यह रिश्ता आत्मविश्वास बढ़ा सकता है .

डॉ. नेहा कहती हैं, “अगर पैरेंट्स और स्कूल गाइड करें, तो यह रिश्ता बच्चे को बेहतर समझदार इंसान बना सकता है — बशर्ते उसमें ‘स्पेस’, ‘कम्युनिकेशन’ और ‘रिस्पेक्ट’ हो .”

क्या सावधानियां ज़रूरी हैं?

  • पैरेंट्स बच्चों को रिलेशनशिप की वास्तविकता बताएं, उसे ‘गुनाह’ या ‘टैबू’ न मानें .
  • स्कूल में सेल्फ-अवेयरनेस और इमोशनल एजुकेशन की क्लास होनी चाहिए .
  • सोशल मीडिया यूज़ पर सीमाएं तय करना ज़रूरी है, ताकि तुलना और दिखावे की संस्कृति से दूर रहें .
  • बच्चों को सिखाएं कि ना कहना भी एक अधिकार है , और कोई भी रिश्ता ज़बरदस्ती नहीं होना चाहिए .

टीनएज रिलेशनशिप (Teenage Relationship) को पूरी तरह नकारना या आंख मूंदकर स्वीकारना — दोनों ही सही नहीं . ज़रूरत है समझदारी की, संवाद की और सही मार्गदर्शन की . ताकि किशोर न तो भ्रम में रहें और न ही दबाव में .

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