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Relationship Tips: रिश्तों की परिभाषा कैसे बदली?

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Relationship Tips: बदलते समय में रिश्तों की परिभाषा कैसे बदली?

बीते कुछ दशकों में समाज, तकनीक और जीवनशैली में भारी बदलाव आए हैं. जिसका सीधा असर रिश्तों की परिभाषा और धारणा पर पड़ा है. आज के रिश्ते भावनात्मक लगाव से आगे बढ़कर व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आत्म-सम्मान और डिजिटल संवाद से भी जुड़ गए हैं. इस विषय पर वरिष्ठ रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. रमा शुक्ला कहती हैं,”आज का रिश्ता सिर्फ साथ रहने का नाम नहीं, बल्कि एक-दूसरे के विकास में सहभागी बनने की प्रक्रिया है.”

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Relationship Tips: रिश्तों की परिभाषा में आया भावनात्मक बदलाव

पहले रिश्तों में स्थायित्व और सामाजिक प्रतिबद्धता सर्वोपरि थी. आज के समय में लोग भावनात्मक स्वास्थ्य और मानसिक शांति को प्राथमिकता देने लगे हैं. अगर रिश्ते में सम्मान और स्पेस न हो, तो लोग उसे तोड़ने का साहस भी करते हैं.

डॉ. शुक्ला कहती हैं,”अब लोग रिश्तों में समझौते नहीं, समझदारी की तलाश करते हैं.”

डिजिटल युग और रिश्तों में दूरियां व नजदीकियां

आज सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप और वीडियो कॉल्स ने संवाद को आसान बना दिया है, लेकिन साथ ही रिश्तों में सतहीपन भी बढ़ाया है.

“अब भावनाएं इमोजी में बदल गई हैं और गहराई अक्सर ‘seen’ तक सीमित रह जाती है.” – डॉ. शुक्ला

करियर और आत्मनिर्भरता का असर

विशेष रूप से महिलाओं के आत्मनिर्भर होने के बाद रिश्तों की भूमिका में बदलाव आया है. पहले महिलाएं रिश्तों को बचाने की जिम्मेदारी उठाती थीं, अब वे रिश्तों में समान भागीदारी चाहती हैं.

शादी के बाहर भी रिश्तों की स्वीकार्यता

लिव-इन रिलेशनशिप, ओपन रिलेशनशिप या समलैंगिक संबंध अब पहले की तुलना में अधिक स्वीकृत हो रहे हैं. समाज धीरे-धीरे रिश्तों के पारंपरिक ढांचे से बाहर सोचने लगा है.

“रिश्ते अब ‘कैसे दिखते हैं’ से अधिक ‘कैसा महसूस कराते हैं’ – इस दिशा में बढ़े हैं.” – डॉ. शुक्ला

रिश्तों में ‘स्पेस’ की मांग

आज के रिश्तों में ‘पर्सनल स्पेस’ एक जरूरी जरूरत बन गई है. पार्टनर से प्यार के साथ-साथ निजी समय और आज़ादी भी अपेक्षित है.

बदलते समय ने रिश्तों को सिर्फ एक सामाजिक दायित्व से उठाकर, आत्म-साक्षात्कार और विकास का माध्यम बना दिया है. रिश्तों में संवाद, सम्मान और स्वतंत्रता अब मूलभूत स्तंभ बन चुके हैं. वरिष्ठ काउंसलर डॉ. रमा शुक्ला की राय में – “रिश्तों को बनाए रखने के लिए अब परंपरा नहीं, समझदारी और भावनात्मक बुद्धिमत्ता की जरूरत है.”

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