बढ़ती आधुनिक दुनिया में विकास दिन प्रति दिन प्रगति पर है, पर क्या उस विकास हम स्वयं को ढाल पा रहे हैं. हर कोई अपनी जिंदगी में खुशहाली चाहता है, पर काम और दुनिया की उलझनों में ये बहुत मुश्किल हो गया है. 18 से 25 साल तक के व्यक्तियों में आज अधिक टेंशन और डिप्रेशन पाया जा रहा है जिसकी वास्तविक से हम शायद अनजान है, क्योंकि ये एक ऐसी आयु है जहां बच्चे एक नया बदलाव अपने अंदर पाते है जिसे हम हार्मोनल चेंजेस (hormonal changes) बोलते है साथ ही वो उस वास्तविकता से रूबरू होते है जो शायद पहले उनके लिए अहम नहीं थी . बच्चों की जीवन शैली में पहले से बहुत परिवर्तन आ चुके है जैसे जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रहे वैसे वैसे कंपीटीशन भी अपना स्तर बढ़ाता जा रहा है जहां अक्सर बच्चों को कई चीजों का सामना करना पड़ता है.
मेंटल हेल्थ समस्याओं के लक्षण
18 से 25 की बीच की स्थिति वाकई एक अहम और बदलावपूरक स्थिति होती है जहां आज की पीढ़ी अकेलेपन, डिजिटल जीवन में इतना अग्रसर होने के कारण कम्युनिकेशन गैप, नींद का पूरा न होना, डिजिटल प्लेटफॉम में इतना समर्पण कर देना खुद को जिससे उनके अंदर आत्मविश्वास की कमी हो जाना, ये सारी चीजें उन्हें मैंटल एंग्जाइटी और डिप्रेशन की ओर ले जाती है.
डॉक्टर स्मृति शुक्ल जो पेशे से मनोवैज्ञानिक डॉक्टर है जो बच्चों की परेशानियों को समझती है उन्हें मोटिवेट करती है और समाधान बताती हैं ताकि फिर से वो अपने जीवन को समझ सकें. उनका कहना है कि बच्चे ऐसी उम्र में अक्सर भटक जाते है क्योंकि आजकल आधुनिकता इतनी आगे बढ़ गई है कि उस विकास में बच्चों की मेंटल हेल्थ का विकास भी बराबर महत्वपूर्ण है.
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर स्मृति शुक्ल कहती हैं कि बच्चों को इस आयु में ही संभालना पड़ता है क्योंकि वे कई चीजों का सामना करते है, अपने आसपास वे ऐसी चीजों से इनफ्लुएंस हो जाते है जो उन्हें टेंशन में डाल देती है , डिजिटल वर्ल्ड में इतना विलीन हो जाते है कि उसको ही पूरा सच समझ के जीने लगते है, दूसरो से अपने जीवन का मापन करने लगते है जिससे उन्हें अपने अंदर कमी लगती है, आत्मविश्वास कम हो जाता है, मां बाप के प्रेशर से अकसर बच्चे डिप्रेशन में आ जाते है क्यों कि पढ़ाई में उत्तीर्ण न हो पाना जो उन्हें इस उम्र से ही तनाव देने लगता है. महत्वपूर्ण है उन्हें जीवन को सरल तरीके से समझने में सहायता की जाए. कठिनाई से लड़ने का साहस दिया जाए क्यों कि जीवन में तनाव लेके कुछ हासिल नहीं हो सकता.
हम बात करें 23 से 25 उम्र वालों की तो वो भी अपने करियर, रिलेशनशिप और परिवार की समस्यायों से घिरे हुए है. ऐसी आयु है जहां उन्हें अपना करियर, अपने मां बाप की जिम्मेदारी और उनके सपने का सच होना सबका भोज लेके वो आगे बढ़ते है और रियलिटी से शायद निराश हो कर वो गलत कदम उठाने की सोचते है या फिर डिप्रेशन का शिकार हो जाते है.
मेंटल एंग्जाइटी से बचने के उपाय
मनोवैज्ञानिक डॉक्टर स्मृति शुक्ल कहती हैं कि ऐसी उम्र में बच्चों पर प्रेशर नहीं होना चाहिए उन्हें अपने डिसीजन और अपने लाइफ पर आजादी मिलने चाहिए . एक मनोविज्ञानिक डॉक्टर से सलाह करके उससे एक आसान रास्ता दिखाना चाहिए क्यों कि अक्सर इंसान अकेलेपन पर शिकार होकर सक्षम नहीं होता कुछ भी सोचने समझने के. मां बाप को बच्चों को समझान चाहिए उन्हें अपने जीवन में जो करना है उन्हें करने देना चाहिए और उनका सहारा बनना चाहिए. मेडिटेशन और योग आज के युग में जरूर बन गया है जो अंतर्मन को शांत रखता है और ये शांति महसूस करना अतिआवश्यक है.
जब मन शांत होगा और जीवन को सरलता से समझना आएगा तभी इंसान खुशी से अपने जीवन को व्यतीत कर सकता है . क्यों कि संतुलन और शांति से ही जीवन को आसानी से गुजारना संभव है.
Leave a Reply