फर्रुखाबाद: स्वच्छ भारत मिशन के तहत करोड़ों रुपये खर्च कर बनाए गए सामुदायिक शौचालय, आज खुद सवालों के घेरे में हैं. फर्रुखाबाद जनपद के कमालगंज विकासखंड की हकीकत कुछ ऐसी ही है, जहां सरकारी बजट तो जारी है. लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल उल्टी है. “हर महीने प्रति शौचालय ₹9000 की लागत सरकार के खाते से निकलती है, जिसमें केयरटेकर की सैलरी से लेकर साफ-सफाई और रखरखाव शामिल है.
क्या इन रुपयों का सही इस्तेमाल हो रहा है? तस्वीरें खुद जवाब दे रही हैं. सिर्फ शौचालय ही नहीं, पंचायत भवन और कूड़ा निस्तारण केंद्र जैसे सार्वजनिक ढांचे भी निष्क्रिय पड़े हैं. लाखों रुपये की लागत से तैयार ये संसाधन आज गांव की जरूरत नहीं, सरकारी फाइलों का बोझ बनकर रह गए हैं.सरकार की नीयत साफ हो सकती है, योजनाएं भी बेहतर हो सकती हैं. लेकिन जब निगरानी और जवाबदेही नहीं होगी, तो ये करोड़ों की योजनाएं सिर्फ कागज़ पर ही चलती रहेंगी.
पांच साल से नहीं खुला सामुदायिक शौचालय
कमालगंज विकास खंड के गांव गदनपुर के ग्रामीण बताते है कि पिछले पांच वर्षों से शौचालय बंद पड़ा है लोग आज भी खेतों में शौच के लिए जाते है. वही दानमंडी के सामुदायिक शौचालय के आगे तो मक्का सूखती नजर आ रही थी. कुछ यही हाल बिचपुरी व अन्य गांवों का देखने को मिलता है.
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