आरा, भोजपुर। भोजपुर जिले के मौजमपुर गंगा घाट पर बना एम्फीबियस (Amphibious) हाउस इन दिनों जितना अनोखा है, उतना ही रहस्यमय भी। तीन साल पहले बने फ्लोटिंग हाउस के बाद अब यही निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस वह वजह बना, जिसके लिए बिहार के मुख्य सचिव राजधानी पटना से बिल्कुल गुपचुप तरीके से भोजपुर पहुंचे।
अब जिले में एम्फीबियस हाउस भी बनकर तैयार हो चुका है। यह ऐसा घर है जो सामान्य दिनों में जमीन पर रहता है और बाढ़ आने पर स्वतः पानी पर तैरने लगता है। इसे बाढ़ प्रभावित इलाकों के लिए एक व्यवहारिक और टिकाऊ समाधान माना जा रहा है। Morning Exercise: ये 5 एक्सरसाइज कर लीं, तो दिनभर रहेगी एनर्जी
इसी एम्फीबियस हाउस को देखने के लिए बिहार की राजधानी पटना से मुख्य सचिव भोजपुर जिले के बड़हरा प्रखंड अंतर्गत मौजमपुर स्थित गंगा घाट पहुंचे। उन्होंने निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस का निरीक्षण किया और इसके तकनीकी पहलुओं को बारीकी से समझा। इसके साथ ही मुख्य सचिव ने मौजमपुर घाट के समीप ही विभागीय अधिकारियों के माध्यम से जिले में संचालित विभिन्न विकासात्मक एवं सरकारी परियोजनाओं की जानकारी भी ली।
इस दौरान यह बात खास तौर पर देखने को मिली कि मुख्य सचिव ने मीडिया से दूरी बनाए रखी, वहीं जिले के अन्य प्रशासनिक अधिकारियों ने भी मीडिया से किसी प्रकार का संवाद नहीं किया। न तो इस निरीक्षण को लेकर कोई पूर्व सूचना दी गई और न ही किसी अधिकारी ने इस विषय पर बोलने की पहल की।
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सूत्रों की मानें तो इसकी एक वजह यह हो सकती है कि एम्फीबियस हाउस अभी निर्माणाधीन अवस्था में है। बताया जा रहा है कि इस घर का औपचारिक उद्घाटन अगले वर्ष प्रस्तावित है, इसी कारण प्रशासन फिलहाल इस परियोजना को गोपनीय रखना चाहता है।
इतना ही नहीं, सूत्र यह भी बताते हैं कि मुख्य सचिव के आगमन की सूचना पर जिलाधिकारी द्वारा एम्फीबियस हाउस परिसर में रेड कारपेट बिछवाने की व्यवस्था कराई गई थी, लेकिन मुख्य सचिव के निर्देश पर उनके आने से पहले ही इसे हटा दिया गया। मुख्य सचिव इस निर्माणाधीन घर को बेहद सादगी और गुपचुप तरीके से देखना चाहते थे, ताकि परियोजना की वास्तविक स्थिति का आकलन किया जा सके।
निरीक्षण के दौरान मुख्य सचिव ने एम्फीबियस हाउस के निर्माण से जुड़े इंजीनियर प्रशांत उपाध्याय, शाशा उपाध्याय और उनकी टीम से मुलाकात कर इस परियोजना की पूरी रूपरेखा, तकनीकी संरचना और भविष्य की योजनाओं की जानकारी ली।
इंजीनियर प्रशांत ने बताया कि इस परियोजना की कल्पना कोविड काल में हुई थी, जब हर साल बाढ़ के दौरान हजारों लोगों के घर डूबते देख उन्होंने बाढ़ से स्थायी समाधान की दिशा में काम करने का निर्णय लिया।

आर्थिक सहयोग नहीं मिलने के बावजूद उन्होंने करीब तीन साल पहले अपने संसाधनों से इस परियोजना को बक्सर में शुरू किया। बाद में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसे भोजपुर लाया गया और पिछले तीन वर्षों से हर मौसम में इसकी मजबूती और उपयोगिता की लगातार जांच की जा रही है। इस घर में रोशनी से लेकर शौचालय तक की व्यवस्था इको-फ्रेंडली तकनीक से की गई है।
फ्लोटिंग हाउस के अनुभव के बाद प्रशांत ने अगले चरण में एम्फीबियस हाउस का विकास किया, जो आम दिनों में जमीन पर और बाढ़ के समय पानी पर सुरक्षित रूप से कार्य करता है। उनका पहला मॉडल करीब 6 लाख रुपये का था, जिसे महंगा माना गया, इसके बाद उन्होंने करीब 2 लाख रुपये की लागत में छोटा (एक कमरा और एक रसोई घर के साथ बाहर का छोटा सा एरिया) और किफायती मॉडल तैयार किया। साथ ही एक कम्युनिटी सेंटर मॉडल भी विकसित किया गया, जहां बाढ़ के दौरान भी सामुदायिक गतिविधियां और प्रशिक्षण संभव हो सकेगा।
आज मौजमपुर गंगा घाट पर खड़ा यह एम्फीबियस हाउस न केवल एक तकनीकी नवाचार है, बल्कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षित भविष्य की उम्मीद भी है। यदि इस मॉडल को सरकारी स्तर पर अपनाया जाता है, तो भोजपुर ही नहीं, पूरा बिहार बाढ़ प्रबंधन के क्षेत्र में एक नई मिसाल पेश कर सकता है।
खामोशी में छिपा बड़ा संकेत
प्रशासन की चुप्पी, मीडिया से दूरी और सादगी भरा निरीक्षण इस बात का संकेत देता है कि एम्फीबियस हाउस को लेकर सरकार गंभीर विचार कर रही है। संभव है कि उद्घाटन के साथ ही यह मॉडल राज्य-स्तरीय योजना का रूप ले।
मौजमपुर गंगा घाट पर खड़ा यह निर्माणाधीन एम्फीबियस हाउस सिर्फ एक ढांचा नहीं, बल्कि बाढ़ से जूझते बिहार के लिए भविष्य की संभावित राह है, जिसे फिलहाल खामोशी में परखा जा रहा है।
संवाददाता- ओ पी पाण्डेय/आरा।


























