गाजियाबाद: क्या गोवा में 25 लोगों की मौत की वजह आप सिर्फ नाइट क्लब के मालिक को मानते हैं? क्या वहां के स्थानीय अधिकारी जो पैसे लेकर गैरकानूनी तरीके से चलवाते थे आप भी उन्हें जिम्मेदार नहीं मानते हैं? क्या वहां के स्थानीय नेताओं जिनकी जिम्मेदारी होती थी कि क्या गलत हो रहा है, इस को लेकर कार्रवाई कराएं, उनकी मिलीभगत को आप जिम्मेदार नहीं मानते हैं? स्थानीय लोगों की चुप्पी क्या उन मौतों की जिम्मेदार नहीं हैं? शासन और प्रशासन आपके भाई, बहन, पति और बच्चों को सिर्फ 25 का आंकड़ा समझता है. यहां गाजियाबाद में क्या कोई ऐसा साल बीता है जब आग नहीं लगी हो.
वसुंधरा: मरीजों की जान जोखिम डालकर पैसों की फैक्ट्री बन चुके हैं ‘अस्पताल’
इंदिरापुरम, वसुंधरा, वैशाली से लेकर साहिबाबाद इंडस्ट्रियल इलाके तक में आग लगने, दीवार गिरने, अस्पताल में गलत इलाज की खबरें आती रहती हैं. अब मौत सिर्फ किसी वेबसाइट, किसी अखबार के कोने की खबर बनकर रह जाती है. सहारा समय के रिपोर्टर की आंखों से एक छोटा उदाहरण देखिए और समझिए कि कैसे हजारों लोग अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं. जिस दिन हादसा होगा उस दिन टीवी, अखबार में खबरें चलेंगी. कोट पैंट पहने एक अफसर आएंगे और आपके पति, बहन, पत्नी और बच्चों की मौत का आंकड़ा सुनाकर चले जाएंगे. बहुत हंगामा होगा तो किसी ‘बाबू’ को सस्पेंड करके फिर काम चालू. सहारा समय के रिपोर्टर ने जयपुरिया सनराइज ग्रीन्स सोसायटी के चारो तरफ जब मुआयना किया और देखा तो रोंगटे खड़े हो गये. स्थानीय सोसायटी के लोगों का दर्द सुना तो दंग रह गया. सोयायटी के चारो तरफ सैकड़ों की संख्या में दुकानें नगर निगम की मेहरबानी से अवैध तरीके से चल रही हैं. सोसायटी में जो स्टोर रूम बने थे अब रेस्टोरेंट बन गये हैं. सोचिए पूरी बिल्डिंग के नीचे बिना किसी फॉयर सेफ्टी के अवैध तरीकों से रेस्टोरेंट चल रहे हैं.
क्या आपको लगता है स्टोर रूम यूं ही दुकान और रेस्टोरेंट में तब्दील हो गये? इस खेल में फायदा नोटों की गड्डियों पर नाचने वाले अफसरों, बाबू और बिल्डर का और स्थानीय नेताओं का है. लेकिन नुकसान किसका है? मौत के मुंह में खड़ी सोसायटी के हजारों लोगों का? बिना किसी फॉयर सिस्टम के अवैध चल रही दुकानों में ईश्वर ना करे किसी भी दिन एक गैस का सिलिंडर फटा तो सैकड़ों लोग काल के गाल में समा जाएंगे?

आप पाठकों को बता दूं कि इंदिरापुरम से ऐसी पचास से अधिक सोसायटी हैं जहां मौत मुंह बाए खड़ी है. यह देश ईश्वर की कृपा पर है वरना उगाही वाले अफसरों की मेहरबानी से मौत हर दरवाजे पर दस्तक दे रही है.
सहारा समय का नगर निगम को सिंपल सलाह, हुजूर स्थानीय लोगों की बद्दुआ आपके बच्चों को आपके काली कमाई भोग करने नहीं देगी?
सहारा समय का सोयायटी के टीम को सलाह, आप अपने लिये लड़ना सीखें, क्या आपने स्थानीय पार्षद, स्थानीय विधायक का घेराव किया, अब आप कहेंगे कि हम लोग व्यापारी या ऑफिस जाने वाले लोग हैं. कहां टाइम है, आप कमा ही रहे हैं जिन अपनों के लिए यदि उनकी जिन्दगी ही दांव पर या भगवान भरोसे हैं तो हर रविवार इस लड़ाई को दीजिए. आपके बच्चे, आपका परिवार आपकी जिम्मेदारी है. प्रशासनिक अफसर के दर पर ठोकरें खाकर थक गये हैं तो पूछिए उन स्थानीय नेताओं से जिन्हें आपने चुना है कोशिश कीजिए कि अगली बार आप वोट अपने बच्चों के सुरक्षा के नाम पर दें वरना अफसर 60 साल बाद रिटायर होते हैं.

Report: प्रकाश नारायण सिंह, सहारा समय


























