एक सुसाइड नोट… चार पन्नों में भरा दर्द… और एक मैसेज,
उत्तर प्रदेश के कुशीनगर से एक दिल दहलाने वाली खबर. एक शिक्षामित्र, जो 24 साल तक बच्चों का भविष्य सँवारता रहा. आज खुद अपनी ही जिंदगी से हार गया। सूदखोरों की धमकियों, बढ़ते कर्ज और सरकार से मिले वादों की धोखाधड़ी ने 47 साल के अश्वनी मिश्रा की जान ले ली। एक सुसाइड नोट… चार पन्नों में भरा दर्द… और एक मैसेज, जिसमें अपने ही अंतिम संस्कार में साथ चलने की गुहार, कुशीनगर का ये मामला प्रदेश की शिक्षा नीति और शिक्षामित्रों की दशा पर बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है. हमारी यह ग्राउंड रिपोर्ट सिर्फ एक मौत की कहानी नहीं, बल्कि उस टूटे हुए सिस्टम की पोल खोलती है, जिसमें धकेलकर एक शिक्षक को ट्रेन के आगे कूदने तक मजबूर कर दिया गया।
कप्तानगंज के राम जानकी घाट पर भीड़ उमड़ी हुई है. सैकड़ों शिक्षक, अश्रुपूर्ण आंखें और उस शिक्षक का पार्थिव शरीर जो कल तक स्कूल में बच्चों को “जीवन का पाठ” पढ़ाता था. आज खुद जीवन की जंग हारकर यहां पहुंचा है, 47 वर्षीय अश्वनी मिश्रा, प्राथमिक विद्यालय पखनहा के शिक्षामित्र…बीते बुधवार की सुबह रोज़ की तरह घर से निकले… लेकिन स्कूल नहीं पहुँचे।
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इसके पहले कि कोई कुछ समझ पाता वो गोरखपुर जा रही ट्रेन के सामने कूद चुके थे,उनकी मौत की असली कहानी. उनके मोबाइल में दर्ज चार पन्नों का सुसाइड नोट है,जिसमें उन्होंने अपनी आखिरी सांसें महसूस करते हुए लिखा”मैं अपनी जिंदगी से हार चुका हूँ… मेरे परिवार के पास पैसे नहीं हैं…मेरी अंतिम क्रिया में सभी लोग आएँ और मेरे परिवार की मदद करें…”
एक बेसहारा पत्नी…14 साल का बेटा ऋषभ…10 साल की मासूम पाखी…और हर पन्ने में दर्ज एक सवाल,
पीछे छूट गई एक बेसहारा पत्नी…14 साल का बेटा ऋषभ…10 साल की मासूम पाखी…और हर पन्ने में दर्ज एक सवाल, क्या अश्वनी मिश्रा वाकई मरना चाहते थे… या उन्हें मरने पर मजबूर किया गया, सुसाइड नोट में अश्वनी ने साफ लिखा है,उन्होंने घनश्याम वर्मा नाम के सूदखोर से पैसा लिया था, जितना लिया… उससे ज्यादा चुका दिया,फिर भी 10% ब्याज पर वसूली,मारपीट… धमकी… “जान से मार दूँगा” तक की चेतावनियाँ,इस डर से वो कई दिनों से छिपते-भागते रहे,और आखिरी लाइन“सूदखोर के हाथों मरने से बेहतर है कि खुद मर जाऊँ…क्या ऐसी स्थितियों को हम “सुसाइड” कहें…
या “प्रेरित मौत”?
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2006 में शिक्षामित्र बने अश्वनी मिश्रा…2015 में समायोजन के बाद वेतन मिला 39 हजार,लेकिन 2017 में सरकार का फैसला समायोजन रद्द…और वेतन फिर से 10 हजार, इसी एक झटके ने अश्वनी की जिंदगी की नींव हिला दी,अश्वनी ने नोट में सिर्फ सूदखोर का ही नहीं…बल्कि दो और लोगों का नाम लिखा,एक ने 3 लाख लेकर चेक बाउंस कराया, एक शिक्षामित्र ने जमीन के नाम पर 4.5 लाख हड़प लिए, जालसाजी… धोखाधड़ी…और हर तरफ से बढ़ते कर्ज ने अश्वनी को मानसिक रूप से तोड़कर रख दिया,14 साल का ऋषभ…जिसकी आँखों में आज भी अपने पिता का सपना तैर रहा है, क्रिकेटर बनने का सपना।
एक शिक्षक…एक पिता…एक पति…और एक इंसान…इतनी परतों में बंधी यह मौत सिर्फ एक व्यक्ति की त्रासदी नहीं,बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है।क्या अश्वनी मिश्रा की मौत से सरकार जागेगी,क्या शिक्षामित्रों के मुद्दे सुलझेंगे,या फिर अगले अश्वनी का इंतज़ार किया जाएगा?”
रितेश पाण्डेय/कुशीनगर, सहारा समय


























