हिंदू धर्म में तुलसी को सबसे पवित्र पौधा माना जाता है. घर-घर में इसकी पूजा होती है और इसे देवी लक्ष्मी का स्वरूप कहा गया है, लेकिन एक आश्चर्य की बात यह है कि गणेश पूजा में तुलसी का इस्तेमाल वर्जित माना जाता है. चलिए जानते हैकि इसके पीछे धार्मिक मान्यता क्या है.
तुलसी गणेश जी को क्यों नहीं चढ़ाई जाती?
तुलसी द्वारा गणेश जी को विवाह प्रस्ताव की कथा- धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार माता पार्वती के पुत्र गणेश जी तपस्या में लीन थे, उसी समय तुलसी देवी वहाँ से गुजरीं और गणेश जी के तेज, रूप और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उन्हें विवाह प्रस्ताव दिया. गणेश जी ने विनम्रता से कहा कि वे विवाह नहीं करना चाहते, इस बात से तुलसी देवी क्रोधित हो गईं और उन्होंने गणेश जी को श्राप दे दिया— “तुम्हारी शादी अवश्य होगी!” गणेश जी ने भी प्रतिशोध में तुलसी को श्राप दिया— “तुम्हारा विवाह एक राक्षस से होगा!” मान्यता है कि इसी कारण गणेश पूजा में तुलसी को वर्जित माना जाता है.
गणेश पूजा में शुद्ध सुगंधित पत्तियों का महत्व- गणेश जी को दूर्वा (घास) और विशेष प्रकार के फूल चढ़ाए जाते हैं, मान्यता है कि तुलसी की सुगंध गणेश जी के ऊर्जा-पथ के अनुकूल नहीं होती, इसलिए पूजा में इसके उपयोग से बचा जाता है.
तुलसी देवी का लक्ष्मी स्वरूप होना- तुलसी को माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है, और गणेश जी घर की सुख-समृद्धि के देवता हैं. धार्मिक मान्यता कहती है कि दोनों की पूजा अलग-अलग विधि और समय में करना शुभ होता है, इसलिए दोनों को एक साथ एक ही पूजा में चढ़ाना परंपरा के अनुसार उचित नहीं माना गया है.
क्या कभी तुलसी गणेश जी को चढ़ाई जाती है?
हालांकि साल के किसी भी दिन गणेश पूजा में तुलसी निषिद्ध है, लेकिन एक अपवाद है विवाह पंचमी के दिन तुलसी के पत्ते चढ़ाना शुभ माना जाता है, इस दिन तुलसी-गणेश कथा के कारण विशेष पूजा की जाती है.
ध्यान रखने योग्य बातें
गणेश पूजा में दूर्वा (तीन पत्तियों वाली घास) सबसे प्रिय मानी जाती है. प्रसाद, फूल और धूप-दीप के साथ तुलसी के पत्तों का उपयोग न करें. धार्मिक परंपरा के अनुसार, तुलसी को केवल विष्णु और कृष्ण भगवान की पूजा में चढ़ाया जाता है.
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