Worship of Lord Shiva: हिंदू धर्म में भगवान शिव के अनगिनत रूपों की पूजा की जाती है, लेकिन कुछ स्वरूप ऐसे हैं, जिनका महत्व अत्यंत अद्वितीय माना गया है. इन्हीं में से एक है भगवान शिव का नीलकंठ रूप, जिसकी पूजा आज भी देशभर में विशेष श्रद्धा और आस्था के साथ की जाती है, लेकिन आखिर इस रूप की पूजा को इतना खास क्यों माना जाता है? आइए जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक और आध्यात्मिक वजहें.
समुद्र मंथन से जुड़ा है रहस्य
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकला घातक हलाहल विष जब देवता और दानव किसी भी रूप में रोक नहीं पाए, तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए पूरा विष पी लिया. विष को गले में रोकने के लिए माता पार्वती ने उनके कंठ पर हाथ रखा, जिससे उनका गला नीला हो गया और वे नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए.
कष्टों का नाश और रक्षा का प्रतीक
नीलकंठ रूप की पूजा को संकट और कष्टों से मुक्ति का उपाय माना जाता है, ऐसा विश्वास है कि जिस तरह शिव ने विष को अपने अंदर रोककर संसार की रक्षा की, उसी तरह भक्तों के दुखों और नकारात्मक ऊर्जा को भी दूर करते हैं.
शांति और धैर्य का सर्वोच्च संदेश
शिव का यह रूप धैर्य, त्याग और करुणा का प्रतिक है. नीलकंठ की पूजा व्यक्ति के मन को शांत करने, क्रोध पर नियंत्रण पाने और मानसिक संतुलन बनाने में सहायक मानी जाती है.
अद्भुत आध्यात्मिक शक्ति
तांत्रिक और आध्यात्मिक साधनाओं में नीलकंठ रूप को अत्यंत शक्तिशाली माना गया है, श्रद्धालु मानते हैं कि इस रूप से जुड़े मंत्रों और साधनाओं से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ता है.
आज भी क्यों बढ़ रही है आस्था?
आधुनिक समय में भी भक्तों की नीलकंठ रूप के प्रति श्रद्धा लगातार बढ़ रही है, कैलाश से काशी तक, शिव के इस विशेष रूप की पूजा के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. विशेषकर सावन और महाशिवरात्रि में नीलकंठ रूप का विशेष पूजन शुभ माना जाता है.
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