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बिहार: अस्पताल अब झाड़-फूंक का अड्डा, कब होंगे CMO सस्पेंड?

समस्तीपुर: वाह रे बिहार! अब मरीजों का इलाज सरकारी अस्पताल में डॉक्टर नहीं करते हैं, झाड़ फूंक करने वालों से कराया जाता है. समस्तीपुर सदर अस्पताल में उस समय स्वास्थ्य व्यवस्था की गंभीर लापरवाही सामने आई जब इमरजेंसी वार्ड के भीतर एक कथित भगत,(झाड़ फूंक से इलाज करने वाला) द्वारा खुलेआम झाड़-फूंक किए जाने का मामला उजागर हुआ।

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पूरे वाकये का वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें भगत मरीज के बगल में बैठकर मंत्र पढ़ते और झाड़-फूंक करते नजर आ रहा है। हैरानी की बात यह कि मौके पर मौजूद नर्सिंग स्टाफ और सुरक्षा कर्मियों में से किसी ने भी उसे रोकना जरूरी नहीं समझा।

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मिली जानकारी के अनुसार भर्ती महिला मरीज की पहचान मुक्तापुर थाना क्षेत्र के चकदौलतपुर गांव निवासी रामप्रीत पंडित की पत्नी फूलो देवी के रूप में हुई है। महिला को पेट दर्द की शिकायत पर परिजन उसे सदर अस्पताल लेकर पहुंचे थे। डॉक्टरों द्वारा आवश्यक इलाज किए जाने के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं होने पर परिजन अंधविश्वास में पड़ गए और स्थानीय भगत को अस्पताल बुला लिया।

इसके बाद इमरजेंसी वार्ड में घंटो तक कथित भगत आराम से मंत्र पढ़कर और झाड़ू से झाड़-फूंक करता रहा। इस दौरान न तो किसी डॉक्टर ने उसे रोका, न ही स्वास्थ्यकर्मियों या गार्ड ने हस्तक्षेप किया। वार्ड के अंदर मौजूद अन्य मरीज और उनके परिजन भी इस गतिविधि को आश्चर्य से देखते रहे। लोगों में इस घटना को लेकर नाराजगी है उनका कहना है कि अस्पताल जैसे संवेदनशील स्थान पर अंधविश्वास को बढ़ावा देना और डॉक्टर-कर्मियों द्वारा इसे अनदेखा करना गंभीर लापरवाही को दर्शाता है।

वायरल वीडियो सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों ने अस्पताल प्रशासन से मांग की है कि इस मामले की जांच कर जिम्मेदार कर्मियों पर कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में ऐसे घटनाक्रम की पुनरावृत्ति न हो। इधर सदर अस्पताल के डीएस डॉ. गिरीश ने बताया कि सुरक्षा में लगे कर्मियों को तलब किया गया है। अस्पताल परिसर में इस तरह का वाकया बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

सहारा समय का सवाल,

  • क्या सरकारी अस्पताल में इस तरह के झाड़ फूंक से अंधविश्वास नहीं बढ़ेगा?
  • इसकी जिम्मेदारी CMO की क्यों नहीं?
  • सरकार कार्रवाई कब तक करेगी?

बिहार पहला राज्य था जिसने जादू-टोना रोकने, एक महिला को डायन के रूप में चिह्नित करने और अत्याचार, अपमान तथा महिलाओं की हत्या को रोकने हेतु कानून बनाया था।
द प्रिवेंशन ऑफ विच (डायन) प्रैक्टिस एक्ट अक्तूबर 1999 में प्रभाव में आया।

रिपोर्ट:रमेश शंकर, समस्तीपुर, सहारा समय