Poverty and Family Planning: आजकल बहुत से युवा और नवविवाहित लोग सोचते हैं कि बच्चे कब होंगे, लेकिन वित्तीय स्थिति सही नहीं है. अक्सर कहा जाता है, “अभी नौकरी नहीं, खर्चे कैसे चलेंगे?” यह बात आज के समय की हकीकत बन गई है. पहले परिवार एक सामान्य बात थी, लेकिन अब युवा पहले अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने का भरोसा रखते हैं. बिजनेस बढ़ रही है, नौकरी की चिंता बनी हुई है और नई लाइफस्टाइल की चाहत ने सोच को बदल दिया है. अब “बच्चा कब हो?” के सवाल का जवाब भी ज्यादातर लोग “पहले नौकरी तो हो” कहने लगते हैं.
आर्थिक तंगी और नौकरी का संकट
मनोवैज्ञानिक भरत सिंह बताते हैं कि भारत में लाखों युवा अभी भी ग्रेजुएशन के बाद शेयर्ड हैं या फिर छोटे काम में लगे हैं. बड़े पैमाने पर होटलों में सुपरमार्केट, बिजनेसमैन, मेडिकल खर्च और लाइफस्टाइल को अटेच करने के लिए साड़ी इनकम ही खत्म हो जाती है. ऐसे में बच्चे का प्रिवी रखना बहुत मुश्किल होता है. हर किसी के लिए यह आसान नहीं है कि वह बच्चे-बच्चे का खर्च उठाए.
बच्चे अब ‘वित्तीय योजना’ का हिस्सा बन गए हैं
मनोवैज्ञानिक भरत सिंह बताते हैं कि पहले बच्चे को ‘भगवान का आशीर्वाद’ माना जाता था और बस स्वीकार किया जाता था. अब उन्हें एक ‘प्लांड इन्वेस्टमेंट’ की तरह देखा जा रहा है. अस्पताल का बिल, पढ़ाई, डे केयर, प्राइवेट स्कूल, कोचिंग और एक्स्ट्रा करिकुलर सभी उम्र के बच्चों के इलाज का खर्च लाखों में होता है. युवा माता-पिता पहले खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना चाहते थे, ताकि उनका बच्चा एक बेहतर जीवन दे सके, वही जीवन जो उन्होंने कभी महसूस किया था.
भावनाओं के बीच खड़े हो गए तनाव
आज भी कई घरों में शादी के बाद जल्दी बच्चे की समस्या सामने आती है, खासकर छोटी गली या पारंपरिक सोच वाले परिवारों में. लेकिन नई पीढ़ी खुद के बारे में सोचती है. वे चाहते हैं कि मानसिक और आर्थिक दोनों स्तर तैयार हो जाएं. ताकि बच्चे का ध्यान सबसे पहले रखा जा सके.
क्या यह सोच सही है?
वास्तव में ये समय की मांग है. अनियमित परिस्थितियाँ, बढ़ती लागत और सीमित औपचारिकता में समझदारी जरूरी हो गई है. ये सिर्फ आपके लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ी के हित में भी है. फिर भी, कुछ लोग बच्चा ही नहीं चाहते. ऐसे में भारत की स्थिति आगे चलकर बिगड़ सकती है. क्योंकि बच्चे नहीं होंगे तो बहुत सी चीजें है, जो थम सी जाएगी.
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