कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाने वाली देव दीपावली (Dev Deepawali) का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. यह पवित्र रात्रि जब काशी नगरी गंगा के तट पर लाखों दीपों से जगमगाती है. ऐसा माना जाता है कि इस दिन देवता स्वयं पृथ्वी पर उतरकर दीप जलाकर भगवान शिव और गंगा माता का पूजन करते हैं, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि देव दीपावली की रात एक दीप पितरों के नाम जलाना जीवन के सबसे पवित्र कर्मों में से एक माना गया है.
पितरों के लिए दीपदान का महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा की रात पितृलोक का द्वार खुलता है. इस दिन जब कोई व्यक्ति अपने पूर्वजों के नाम दीप जलाकर उन्हें स्मरण करता है, तो उनकी आत्मा को शांति प्राप्त होती है और वह व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है. यह भी कहा गया है कि पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और संतोष का आशीर्वाद देते हैं.
कैसे करें पितरों के नाम दीपदान
सूर्यास्त के बाद गंगा जल या स्वच्छ जल से स्नान करें, पूर्वजों का स्मरण कर तुलसी या पीपल वृक्ष के नीचे दीप जलाएं, दीप में तिल का तेल या घी का प्रयोग करें और यह मंत्र बोलें “ॐ पितृभ्यो नमः दीपं ददामि”, दीप जलाते समय मन में अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता का भाव रखें. इस दीपदान से माना जाता है कि पितरों की आत्माएं संतुष्ट होती हैं और घर से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.
देव दीपावली का धार्मिक संदेश
देव दीपावली केवल देवताओं की पूजा का दिन नहीं है, बल्कि यह कर्म, भक्ति और कृतज्ञता का पर्व है. जिस प्रकार गंगा के घाट दीपों से जगमगाते हैं, वैसे ही मनुष्य के जीवन में भी प्रकाश फैलता है जब वह अपने पूर्वजों को श्रद्धा से याद करता है.
इसे भी पढ़े- Dev Deepawali 2025 की पवित्र रात ये 5 मंत्र बदल देंगे आपकी किस्मत!


























